Book Details
Authored By: Narendra K Sinha
Publisher: Authorspress
ISBN-13: 9789352071241
Year of Publication: 2015
Pages: 310 | Binding: Hardback(HB) |
Category: Education
Price in Rs. 416.50 | Price in (USA) $. 33.32 |
Book Description
प्रस्तुत पुस्तक का मौलिक स्वरूप पत्र-सेवा के रूप में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान से प्रकाशित हुआ था, किन्तु इसका समुचित उपयोग सेवा–स्वरूप में नहीं किया जा सका । यह पुस्तक वस्तुत: अमेरिका के लॉस ऐंजलेस नगर में स्थापित जॉन ट्रेसी क्लिनिक द्वारा प्रस्तुत कॉरोस्पोंडेंस कोर्स फ़ॉर दि पैरेंट्स ऑफ् लिट्ल डेफ़ चिंल्ड्रेन के प्रथम संस्करण का अनुवाद है । इसमें बधिर शिशुओं के माता–पिता के लिये कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बातें लिखी हैं जिन्हें जानना उनके लिये ज़रूरी है । बधिर बच्चे को सांकेतिक भाषा की सीख न दिया जा कर उनसे बोलवाने की चेष्टा कराना बहुत अधिक उपयोगी तथा स्वाभाविक प्रतीत होता है पर ऐसा करना अकेले किसी भी बधिर बच्चे के शिक्षक के लिये सम्भव नही है, बच्चे के माता-पिता दोनों को शिक्षक के साथ मिलकर बच्चे को शिक्षा देने का काम करना चाहिये । यह दुर्भाग्य की बात है कि बच्चे के स्वयं माता-पिता ही अपने बच्चे के लिये समय नहीं दे पाते । साथ ही यह भी सही है कि उनका मार्ग-निर्देशन भी ठीक से नहीं हो पाता । प्रस्तुत पुस्तक इसी कमी को पूरा करने का एक प्रयास है । लेखक को पूरा विश्वास है कि यदि इस पुस्तक के निर्देशों का ठीक से पालन किया गया तो सभी बधिर बच्चे बोलने लग सकते हैं । और यह चेष्टा बच्चे की जितनी भी छोटी अवस्था में हो सके आरम्भ कर देनी चाहिये । इस पुस्तक में दिये गये शिक्षा-सम्बन्धी निर्देश एक वर्ष से लेकर छ: वर्ष तक की आयु के बच्चे के लिये हैं ।
नरेन्द्र कुमार सिन्हा : एक परिचय
नरेन्द्र कुमार सिन्हा का जन्म भारत में बिहार के गया नगर में २ अगस्त १९३२ में हुआ था । इन्होंने हिन्दी, पालि, तथा संस्कृत में एम० ए० करके आगरा विश्वविद्यालय से भाषविज्ञान में पी-एच० डी० किया । भारत में नैदानिक भाषाविज्ञानका प्रवर्तन (जिसका नामकरण ही क्लिनिकल लिंग्विस्टिक्स के नाम से आगे चलकर सन् १९७२ में हुआ) नरेन्द्र कुमार सिन्हा ने ही अपनी पी-एच० डी० के द्वारा १९६३ में किया था । फलस्वरूप इन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली,में कुछ वर्षों तक काम किया । सन् १९८० में ये अमेरिका चले गये, जहाँ इन्होंने वाणी-उपचार-विशेषज्ञ के रूप में प्राय: बीस वर्षों तक काम करके सन् २००० में अवकाश प्राप्त किया । इन सब के बीच भाषा-साहित्य में इनकी रुचि बराबर बनी रही । हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कविता , कहानी, तथा उपन्यास का प्रणयन वलता रहा । अब तक इनकी दर्जनों किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। इधर कुछ अनुवादों का सिलसिला चल रहा है ।