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Book Details


Tripitak Mein Kya Hai



Authored By: Narendra K Sinha


Publisher:  Authorspress


ISBN-13: 9789352075393


Year of Publication: 2017


Pages: 222

                                       Binding: Paperback(PB)


Category:  Poetry, Fiction and Short Stories


Price in Rs. 280.00

                             Price in (USA) $. 29.95

                            
Inclusive of All Taxes (After 30% Discount on the Printed Price)

Book Description


Book Contents


 
 

About the Book


 

नरेन्द्र कुमार सिन्हा : एक परिचय

नरेन्द्र कुमार सिन्हा का जन्म बिहार के गया नगर में २ अगस्त, १९३२ को हुआ था । इन्होंने हिन्दी, पालि, तथा संस्कृत में एम० ए० करके १९६३ में आगरा विश्वविद्यालय से भाषा-विज्ञानमें पी०-एच०-डी० किया । गया कालेज, गया में इन्हॉने  १९५६ से १९६७ तक हिन्दी के व्याख्याता के रूप में काम किया ।  इस बीच इन्होंने मुंडा भाषा पर काम करके दो पुस्तकों का भी प्रणयन किया ।   भारत में नैदानिक भाषाविज्ञान का प्रवर्तन (जिसका नामकरण ही क्लिनिकल लिंग्विस्टिक्स के नाम से सन् १९७२ में हुआ ) नरेन्द्र कुमार सिन्हा ने ही अपनी पी०एच०डी० के द्वाराकिया । फलस्वरूप इन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली, में कुछ वर्षों तक काम किया । तदनन्तर, ये मैसूर के केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान में भी कुछ वर्षों तक कार्यरत रहे । । सन् १९८० में ये अमेरिका चले गये , जहाँ इन्हॉने कुछ समय तक मिनिसोटा विश्वविद्यालय तथा विस्काँसिन विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाने के बाद वाणी-उपचार-विशेषज्ञ के रूप मेंकईवर्षों तक काम करके सन् २००० में अवकाश ग्रहण किया । तब से अब तक ये हिन्दी तथा अँग्रेज़ी में प्राय: १५ पुस्तकों का प्रणयन कर चुके हैं जिनमें कहानी, उपन्यास , कविता, अनुवाद इत्यादि सम्मिलित हैं ।इन्होंने अभी-अभी डा० बी० बी० लाल की प्रसिद्ध पुस्तक “हिस्टोरिसिटिऑफ़ महाभारत” का हिन्दी में तथा पालि भाषा के धम्मपद का अनुवाद अँग्रेज़ी में किया है ।   


About the Author


 

त्रिपिटक में क्या है?

बौद्ध साहित्य, विशेषत: थेरवादी  बौद्ध साहित्य, में त्रिपिटक प्रधान सम्पदा है । चालीस से भी अधिक खंडों तथा कई हजार पृष्ठों में संकलित बुद्ध के वचनों के अतिरिक्त उनकेपूर्व जीवन के वृतान्तों, अनेकानेक गाथाओं, तथा धर्म सम्बन्धित विवेचनों का यह बृहत् भांडार है  । इसका नाम त्रिपिटक इसलिये पड़ा क्योंकि इसके तीन विभाग हैं, (१) विनय पिटक, जिसमें भिक्खुओं के आचरण तथा अनुशासन का विधान किया गया है, (२) सुत्त पिटक, जिसमें बुद्ध के वचनों के अतिरिक्त अनेक गाथायें संकलित हैं, (३) अभिधम्म पिटक, जिसमें धम्म के विभिन्न अवयवों का विवेचन है । यद्यपि त्रिपिटक का अनुवाद हिन्दी में भी हो चुका है पर समस्त त्रिपिटक का अवगाहन करना किसी भी सामान्य  जन के लिये बहुत कठिन है । फिर भी सामान्य जन में यह उत्सुकता होना स्वाभाविक है कि इस महाग्रंथ में है क्या, जिसकी इतनी महत्ता है, तथा इतनी ख्याति है ।इसी उत्सुकता के निवारण के लिये यह छोटी सी पुस्तिका लिखी गयी है । समस्त त्रिपिटक का निचोड़ इन पृष्ठों में इस तरह रखा गया है जिससे किसी को भी इस महाग्रंथ का का सार तत्व प्राप्त हो सके ।